पटना। पटना हाईकोर्ट ने जाति आधारित गणना पर फिलहाल रोक लगा दी है। कोर्ट ने राज्य सरकार को जाति आधारित सर्वे तुरंत बंद करने का आदेश दिया। साथ ही यह सुनिश्चित करने को कहा कि एकत्र किए गए डाटा सुरक्षित रखें और किसी भी हाल में अंतिम आदेश पारित होने तक किसी के साथ इसे साझा नहीं करें।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति के विनोद चन्द्रन और न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद की खंडपीठ ने गुरुवार को एक साथ पांच याचिका पर सुनवाई कर 31 पन्ने का अपना अंतरिम आदेश दिया। कोर्ट ने इन सभी मामलों पर आगे की सुनवाई के लिए 3 जुलाई की तारीख तय की है। कोर्ट के अंतरिम आदेश के कुछ घंटे बाद ही सामान्य प्रशासन विभाग ने गणना पर रोक का आदेश जारी कर दिया।
सीधे कानून बना देना चाहिये था कोर्ट ने सर्वे और जनगणना में अंतर बताते हुए कहा कि सर्वे में किसी खास का डाटा इकट्ठा कर उसका विश्लेषण किया जाता है, जबकि जनगणना में प्रत्येक व्यक्ति का विवरण इकट्ठा किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि जब विधायिका के पास कानून बनाने की शक्ति है तो फिर क्यों दोनों सदनों से जाति आधारित सर्वे प्रस्ताव को पारित करा कैबिनेट से मंजूरी ली गई। विधायिका को जाति आधारित सर्वे करने के लिए सीधे कानून बना देना चाहिये था। कोर्ट ने कहा कि जाति आधारित सर्वे एक प्रकार की जनगणना है। जनगणना करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार के पास है। राज्य सरकार जाति आधारित सर्वे नहीं करा सकती है। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि यह मौलिक अधिकार से जुड़ा मामला है। बता दें कि सात जनवरी से जातीय गणना शुरू हुई थी।
कोर्ट के अंतरिम आदेश से भाजपा खुशतेजस्वी
उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा राज्य में जातीय गणना के संबंध में दिए गए अंतरिम आदेश पर कहा कि इससे भाजपा खुश होगी, लेकिन, जातीय गणना से सबका भला होगा।
फैसले को पढ़ने के बाद राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के बारे में निर्णय लेगी। प्रथम दृष्टया यह कोई मामला बनता ही नहीं है राज्य सरकार गहन विचार के बाद जाति सर्वेक्षण करा रही है।
-पीके शाही, महाधिवक्ता
जाति आधारित सर्वे एक प्रकार की जनगणना है। जनगणना करने का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार के पास है। राज्य सरकार जाति आधारित सर्वे नहीं करा सकती है। -हाईकोर्ट
सरकार जाति सर्वेक्षण करा रहीमहाधिवक्ता
आवेदकों की ओर से उठाये गए सभी सवालों का जवाब महाधिवक्ता पीके शाही ने पूरी मजबूती से कोर्ट में रखा। उन्होंने कहा कि अभी तक 80 प्रतिशत काम पूरा हो गया है। इसके लिए आकस्मिक निधि से एक पैसा भी नहीं निकाला गया है। इसके लिए बजाप्ता बजटीय प्रावधान किया गया है। उन्होंने कहा कि प्रथम दृष्टया यह कोई मामला बनता ही नहीं है कि आवेदकों को अंतरिम आदेश दिया जाए। राज्य सरकार गहन विचार के बाद जाति सर्वेक्षण करा रही है। उन्होंने गोपनीयता भंग होने के सवाल पर जवाब देते हुए कहा कि जाति का खुलासा करना गोपनीयता का उल्लंघन नहीं है। देखें P 02
सर्वे की आड़ में जाति गणना याचिकाकर्ता
इससे पहले आवेदकों की ओर से अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव तथा धनंजय कुमार तिवारी ने कोर्ट को बताया कि जनगणना करने का अधिकार किसके पास है। उन्होंने कहा कि सिर्फ केंद्र सरकार को जनगणना करने का अधिकार है। राज्य सरकार जातिगत सर्वेक्षण की आड़ में जातिगत गणना नहीं करा सकती। वहीं अधिवक्ता दीनू कुमार ने आकस्मिकता निधि से 500 करोड़ रुपये खर्च करने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि राज्य सरकार को इस निधि से खर्च करने के पूर्व वित्त विभाग से अनुमति लेनी है। अधिवक्ता शाश्वत ने ट्रांसजेंडरों की ओर से मुद्दा उठाते हुए कहा कि ट्रांसजेंडरों की व्यक्तिगत पहचान है।
सरकार ने सही तरीके से पक्ष नहीं रखातारकिशोर
पूर्व उपमुख्यमंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेता तारकिशोर प्रसाद ने कहा, जाति आधारित गणना पर पटना हाईकोर्ट द्वारा तत्काल रोक लगाये जाने से यह साफ होता है कि राज्य सरकार ठीक ढंग से अपना पक्ष नहीं रख सकी है। जातीय गणना को लेकर राज्य सरकार गंभीर नहीं है।